Tuesday 23 May 2017

अहद नामा


अहद नामा

*हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसललम इरशाद फरमाते हैं कि जो कोई सारी उम्र में एक बार दिल की गहराईयों से अहद नामा पढ़ेगा तो खुदा चाहेगा तो ईमान से रुखसत होगा*

*इंसान के बदन में 3000 बीमारियां हैं जिनमे से 1000 का ही इलाज हकीम जानते हैं 2000 ला-इलाज है जो कोई अहद नामा अपने पास रखे मौला उसे 3000 बीमारियों से महफूज़ रखेगा*

*किसी बीमार को चीनी की प्लेट पर लिखकर धोकर पिलायें इन शा अल्लाह मरीज़ शिफायाब होगा*

*जो कोई मुश्क या ज़ाफरान से लिखकर बारिश के पानी से धोकर 7 दिन पिये तो उसकी अक़्ल निहायत तेज़ होगी कि जो कुछ सुने हरगिज़ ना भूलेगा*

*खातूने जन्नत हज़रते फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि जो कोई अहद नामा पढ़े और फिर इसके वसीले से दुआ करे इन शा अल्लाह उसकी हाजत पूरी होगी*

*जो कोई 41 बार पढ़कर अपने मुर्दे को बख्शे तो क़ब्र उसकी मशरिक से लेकर मग़रिब तक कुशादा हो जाए और मुन्कर नकीर के सवालात आसान होंगे*

*क़यामत के दिन अहद नामा एक हसीन सूरत में ज़ाहिर होकर अपने पढ़ने वाले की बख्शिश करवायेगा*

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,हिस्सा 2,सफह 258

अहद नामा शरीफ नीचे दिए गए लिंक को
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* Huzoor sallallaho taala alaihi wasallam irshad farmate hain ki jo koi saari umr me ek baar dil ki gahrayion se ahad naama padhega khuda chahega to imaan se rukhsat hoga

* Insaan ke badan me 3000 bimariyan hain jinme se 1000 ka hi ilaaj doctor jaante hain 2000 marz la ilaaj hai jo koi ahad naama apne paas rakhe to maula use 3000 bimariyon se mahfooz rakhega

* Kisi mareez ko cheni ki plate par likhkar dhokar pilayen in sha ALLAH mareez shifayab hoga

* Jo koi mushk ya zaafran se likhkar baarish ke paani se dhokar piye to uski aql nihayat tez hogi ki jo kuchh sunega wo yaad rahega

* Khatune jannat hazrate fatima zuhra raziyallahu taala anha farmati hain ki jo koi ahad naam padhe phir iske waseele se dua kare in sha ALLAH uski haajat poori hogi

* Jo koi 41 baar padhkar murde ko bakhshe to qabr uski mashrik se magrib tak kushada hogi munkar nakeer ke sawal aasan honge

* Qayamat ke din ahad naama ek haseen surat me zaahir hokar apne padhne waale ki bakhshish karayega

📕 Shamye shabistane raza,h 2,s 258

*Ahad naama sharif niche diye gaye link ko open karke download kar lein*

https://s-media-cache-ak0.pinimg.com/236x/ac/d6/46/acd646b1808c4155c16fc68ee5291447.jpg?_e_pi_=7%2CPAGE_ID10%2C7308894426


Monday 22 May 2017

बिरादरी बदलना


              बिरादरी बदलना

* हज़रते सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि जो शख्स जानबूझकर किसी दूसरे को अपना बाप बताये उसपर जन्नत हराम है

📕 बुखारी शरीफ,जिल्द 2,सफह 1001
📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 1,सफह 57
📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 6,सफह 195

* जो किसी दूसरे को अपना बाप बताये उसपर अल्लाह उसके फ़रिश्ते और तमाम इन्सानों की लानत है

📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 1,सफह 465

अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन करता है जो अपने बाप को छोड़कर किसी दूसरे को अपना बाप कहे,मगर हक़ीक़त तो ये है कि आजकल ऐसा बहुत सारे लोग करते हैं और इस पर बहुत फख्र महसूस करते हैं,चलिए देखतें हैं कैसे

वैसे तो हिंदुस्तान में सय्यद,पठान,शैख़ और मुग़लों को छोड़कर मुसलमानों की ज़्यादातर जितनी भी cast है सब यहीं के काफ़िरों से converted है,जिनका नाम और वजूद कुछ नहीं है,मगर चुंकि नाम से मंसूबियत एक क़दीम ज़माने से चली आ रही है तो यही अब हर क़ौम की पहचान बन गयी है मसलन अंसारी,मंसूरी,क़ुरैशी,सिद्दिक़ी,राइन,रहमानी,सलमानी व दीग़र जो भी हों,मगर आजकल हमारे यहां बिरादरी बदलने की नाजायज़ नुहूसत बहुत आम हो चली है,किसी backword cast का कोई शख्स किसी मोहल्ले या शहर में रहता है तो कुछ है और जहां कोई नई जगह settle हुआ तो फ़ौरन अपनी cast बदल ली मसलन अंसारी सय्यद हो गए,मंसूरी खान हो गए,सलमानी सिद्दिक़ी हो गए,और ये नहीं सोचा कि ऐसा करके हम क्या कर रहे हैं,मैं आपसे पूछता हूं आप बताइए कि अगर मां सय्यद है और बाप मंसूरी तो बच्चे की cast क्या होगी,ज़ाहिर सी बात है कि बच्चा सय्यद तो हो नहीं सकता क्योंकि नस्ल हमेशा बाप से चलती है,अब अगर कोई मंसूरी अपने आपको सय्यद लिखने लगे तो इसका मतलब क्या होगा जानते हैं,माज़ अल्लाह सुम्मा माज़ अल्लाह ये कि उसने अपनी ही मां पर ज़िना का इलज़ाम लगाया कि उसकी मां ने किसी सय्यद से ज़िना कराया जिससे ये पैदा हुआ तब ही तो अपने आपको सय्यद लिख रहा है,यही उस हदीसे पाक का मफ़हूम है कि लोग जान बूझकर अपनी वलदियत ग़ैर की तरफ़ मंसूब करेंगे,और ऐसा क्यों किया जाता है,सिर्फ और सिर्फ थोड़ी सी इज़्ज़त पाने के लिए,कि छोटी cast वाले होकर जो ज़िल्लत उठानी पड़ रही थी तो अपने आपको बड़ी cast वाला कहलाना शुरू कर दिया,मेरे अज़ीज़ों अल्लाह के यहां जात बिरादरी नहीं देखी जाती उसके यहां सिर्फ और सिर्फ नेक अमल चलता है जैसा कि खुद इरशाद फरमाता है कि

* बेशक अल्लाह के यहां तुममे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जो ज़्यादा परहेज़गार है

📕 पारा 26,सूरह हुजरात,आयत 13

बताइये रब तो ये कह रहा है और इंसान है कि अपना बाप बदलकर इज़्ज़त पाने की कोशिश में लगा है,लिहाज़ा अगर कोई ऐसा कर रहा है तो फ़ौरन तौबा करे और जो उसकी हक़ीक़त है वो बताये,अलहम्दो लिल्लाह मैं खुद मंसूरी हूं और यही बताता हूं,और जो कोई मंसूरी नहीं समझ पाता उसे मैं "बेहना" कहकर अपना तार्रुफ़ करवाता हूं और मुझे इस बात पर कोई शर्म महसूस नहीं होती,क्योंकि अल्लाह ने जिसके लिए जो बेहतर समझा उसे वो बनाकर पैदा फरमा दिया,तो अब रब के काम पर ऐतराज़ क्यों जो उसने बना दिया उसे खुशी खुशी तस्लीम कीजिये,और रही बात इज़्ज़त की तो दुनिया वाले नहीं समझते तो ना समझें मगर कम से कम अपने आमाल सुधार कर आख़िरत तो अच्छी बना लीजिए कि वहां तो इज़्ज़त मिले,याद रखिए जिसके अमल ख़राब होंगे वो किसी तरह कामयाब नहीं हो सकता जैसा कि हदीसे पाक में आता है हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

* जिसका अमल उसे पीछे ढ़केल दे वो नस्ब से आगे नहीं बढ़ सकता

📕 📕 मुस्लिम शरीफ़,जिल्द 2,सफह 345

लिहाज़ा बिरादरी बदलकर इज़्ज़त पाने की हवस छोड़ दीजिए,अब आईये इस पर कि क्या एक औरत शादी के बाद अपने नाम के साथ शौहर का नाम जोड़ सकती है कि नहीं,तो सबसे बेहतर तो यही है कि लड़की सिर्फ अपना नाम लिखे शादी से पहले भी और बाद को भी,लेकिन अगर कोई लड़की अपना नाम बदलती भी है तो इसमें 2 बातें हैं,मसलन औरत का नाम सालिहा खान है बाप का नाम अज़मत खान है लड़की अपना नाम सालिहा अज़मत लिखती है,अब उसकी शादी हुई नसीम सिद्दिक़ी के साथ,तो अब वो अगर अपना नाम सालिहा नसीम लिखती है तो कोई हर्ज नहीं क्योंकि ये नस्ब बदलना नहीं हुआ बल्कि शौहर से मंसूबियत हुई,लेकिन अगर सालिहा नसीम की जगह सालिहा सिद्दिक़ी लिखती है तो ये नाजायज़  है कि शादी करने से उसका नस्ब नहीं बदला,लिहाज़ा नाम वल्दियत के साथ लिखने का जो रवाज हिंदुस्तान में नहीं है उसे ना ही अपनाया जाए तो ज़्यादा बेहतर है,यहां जो कुछ भी लिखा है सय्यद,खान,अंसारी,मंसूरी वो सिर्फ मिसाल के तहत समझाने की गर्ज़ से लिखा है कोई ये ना समझे कि मैने किसी क़ौम को बुरा कहा है,फिर भी अगर किसी को पर्सनली फ़ील हुआ तो मै माफ़ी चाहता हूं

Friday 19 May 2017

Malumat


****** Malumat ******  

* महफिल को हंसाना या यार दोस्तों के साथ हंसी मज़ाक करना जायज़ है मगर झूट या बेहूदगी नहीं होनी चाहिए

* बाज़ लोग याददाश्त के लिए कमरबंद या रूमाल वग़ैरह पर गिरह लगा देते हैं ये जायज़ है और इसी नियत से उंगलियों पर डोरा बांधना भी जायज़ है हां बिला वजह बांधना मकरूह है

* ऐसा बिछौना या तकिया या दस्तर ख्वान जिस पर कुछ लिखा हो इस्तेमाल करना नाजायज़ है

* मुशरेकीन के बर्तनों में कुछ भी खाना पीना मकरूह है जब तक कि उसे धो ना लें ये तब है जबकि उसका नापाक होना मालूम ना हो वरना अगर यक़ीनी है तो ऐसे बर्तनों में खाना पीना हराम है

* फर्जी यानि झूठे किस्से कहानियां पढ़ना या सुनना जायज़ है

* लोगों के साथ इखलाक़,नर्मी से पेश आना मुस्तहब यानि अच्छा है मगर बदमज़हब से बात करने में इतना लिहाज़ रखें कि उसे यक़ीन रहे कि इसे मेरा मज़हब पसंद नहीं

* किराए पर मकान दिया और खुद मकान देखना चाहता है तो किरायेदार से इजाज़त लेकर जा सकता है बग़ैर इजाज़त नहीं,कि मकान इसका है मगर सुकूनत उसकी

* किसी भी जानवर या कीड़े मकोड़ों को ज़िन्दा आग में डालना मकरूह है

* अगर जान माल इज़्ज़त आबरू का खतरा है या किसी पर अपना हक़ आता है और वो नहीं देता तो ऐसी हालत में किसी को रिश्वत देता है कि मेरा हक़ वुसूल हो जाए या मैं हिफाज़त से रहूं तो ये देना जायज़ है हालांकि लेने वाले को हरगिज़ जायज़ नहीं होगा

* बेटा अपने बाप का नाम लेकर या बीवी अपने शौहर को नाम लेकर पुकारे मकरूह है

* दुनियावी तक़लीफ की वजह से मरने की आरज़ू करना मकरूह है मगर गुनाहगार होने की वजह से मरना चाहता है ऐसी आरज़ू मकरूह नहीं

* काफिर के लिए मग़फिरत की दुआ करना जायज़ नहीं हां किसी ज़िन्दा के लिए हिदायत की दुआ कर सकता है

* हर महीने की 3,13,23 या 8,18,28 को निकाह के लिए मन्हूस जानना या किसी महीने को बुरा जानना जिहालत है,इस्लाम में इसकी कोई अस्ल नहीं

* इमामा शरीफ खड़े होकर बांधना और पैजामा बैठकर पहनना है,जो इसका उल्टा करेगा वो ऐसे मर्ज़ में मुब्तेला होगा जिसकी दवा डाक्टरों के पास भी नहीं होगी यानि ला इलाज मर्ज़

📕 बहारे शरियत,हिस्सा 16,सफह 132,252-259

शियाओं ने अहले बैत व मौला अली की शान में 3 लाख के करीब फर्जी हदीसे गढ़ी हैं

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 297

बैतुल मुक़द्दस की ज़मीन आसमान से सबसे ज्यादा क़रीब है क्योंकि हर जगह से ये ज़मीन 18 मील ऊंची है

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 4,सफह 687

बुर्राक़ बर्क़ से बना है यानि बिजली,बर्क़ 1 सेकंड में 299337 किलोमीटर का सफर तय करती है

📕 क्या आप जानते हैं,सफह 27

शराब पीते,ज़िना करते,चोरी करते जुआ खेलते या किसी भी हराम काम करते वक़्त बिस्मिल्लाह पढ़ना हराम है,और अगर जाएज़ समझे जब तो काफिर है

📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 2,सफह 286

जो रोज़ाना खाना खाने से पहले फातिहा दे ले तो कभी उस घर में रिज़्क की तंगी व बे बरकती नहीं होगी

📕 जायल हक़,जिल्द 1,सफह 253

दोज़ख में अज़ाब के 19 फरिश्ते हैं,हर 1 का क़द 100 साल की राह जितना है,उनकी 1 ज़र्ब से 7 लाख आदमी रेज़ा रेज़ा हो जाते हैं

📕 तफसीरे नईमी,जिल्द 1,सफह 44

पहले खाना नहीं सड़ता था,बनी इसराईल को हुक्म था कि 'मन्न व सलवा' दूसरे दिन के लिए बचा कर ना रखें पर वो नहीं माने,उनकी नाफरमानी की वजह से खाना खराब होना शुरू हुआ

📕 रूहुल बयान,जिल्द 1,सफह 97

Monday 15 May 2017

हुक़ूक़े वालिदैन


                              हुक़ूक़े वालिदैन



                           
*कल मदर्स डे गुज़रा बड़े अच्छे अच्छे मैसेज पढ़ने को मिले,बड़ी अच्छी बात है कि मां की अज़मत को बयान करने के लिए एक दिन मुक़र्रर किया गया मगर उससे भी अच्छी बात ये होती कि हम रोज़ाना ही मां की अज़मत का ख्याल रखते,मां-बाप की अज़मत के लिए एक दिन मुक़र्रर करना और उस दिन उनके साथ सेल्फी खींचकर पोस्ट करने भर से ही हम फरमाबर्दार नहीं बन जायेंगे,बल्कि हर दिन हर पल हर घड़ी हमें मां-बाप का फरमाबर्दार बनना पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो यक़ीन जानिये कि फिर हमारा जहन्नम मे जाना तय है अगर मेरी बात पर भरोसा ना हो तो ये हदीस पढ़िये*

* सहाबिये रसूल हज़रत अलक़मा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का जब नज़अ का वक़्त आया तो हुज़ूर ने हज़रत अम्मार,हज़रत सुहैब व हज़रत बिलाल रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन को उनके पास कल्मे की तलक़ीन को भेजा,ये हज़रत गए और खूब कोशिश की मगर हज़रत अलक़मा की ज़बान से कल्मा अदा ना हो पाया,इन्होने आकर हुज़ूर ﷺ को खबर दी आपने फरमाया कि उसके वालिदैन में से जो ज़िंदा हो उसे लेकर आओ,उनकी मां जो जिंदा थीं उन्हें बारगाहे नबवी में हाज़िर किया गया,तो नबी अलैहिस्सलाम ने उनसे पूछा कि मुझे सच बता कि तेरे बेटे की क्या कैफियत थी,इस पर वो बोलीं कि मेरा बेटा बहुत नमाज़ें पढता था रोज़े भी खूब रखता था और सदक़ा खैरात भी किया करता था मगर अपनी बीवी को मुझ पर तरजीह देता था और मेरी नाफरमानी करता था,हुज़ूर ने फरमाया यही सबब है कि तेरे बेटे की ज़बान से कल्मा नहीं निकलता तो तू उसे माफ करदे,इस पर वो बोलीं कि उसने मुझे बहुत दुख पहुंचाया है मैं उसे माफ नहीं करुंगी,ये सुनकर हुज़ूर ने गज़ब का इज़हार फरमाते हुए हज़रत बिलाल को हुक्म दिया कि लकड़ियां इकट्ठी करो हम उसमे अलक़मा को ज़िन्दा जलायेंगे,जब उस औरत ने ये सुना तो ज़ारो क़तार रोने लगी कि हुज़ूर आप ऐसा गज़ब ना करें तो आक़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि अगर तूने उसे माफ ना किया तो वो इससे 70 गुना ज़्यादा तेज़ आग में जलने वाला है,ये सुनकर उस औरत ने सबको गवाह बनाकर अपने बेटे को माफ कर दिया उसके माफ करते ही हज़रत अलक़मा की ज़बान से कल्मा निकला और रूह कब्ज़ हो गई,हुज़ूर ﷺ ने सहाबा के साथ कफन दफन का पूरा इंतज़ाम किया और बाद दफन आप वही क़ब्र पर ये खुतबा देते हैं कि ऐ मुहाजिरीन और अन्सार के गिरोह जो शख्स अपनी बीवी को मां पर फज़ीलत देगा उस पर अल्लाह उसके फरिश्ते और तमाम लोगों की लाअनत होगी और अल्लाह उसका कोई भी फर्ज़ व नफ्ल क़ुबूल ना फरमायेगा यहां तक कि वो तौबा करे और अपने वालिदैन से हुस्ने सुलूक करे

📕 किताबुल कबायेर,सफह 76

*ये मामला सहाबी के साथ पेश आया सोचिये जब मां की नाफरमानी की बदौलत उनका ये हश्र हुआ तो हम और आप किस गिनती में हैं,लिहाज़ा अगर दुनिया से ईमान की हालत में जाना चाहते हों तो अपने मां-बाप को राज़ी रखें,यहां पर एक मसला भी खूब अच्छी तरह से समझ लीजिये,सरकारे आलाहज़रत फरमाते हैं कि*

* मां-बाप अगर औरत को तलाक़ देने का हुक्म देते हैं और तलाक़ ना देने पर वो अपनी औलाद से नाराज़ हैं तो ऐसी सूरत में मर्द का अपनी बीवी को तलाक़ देना वाजिब है अगर चे लड़की की कोई गलती ना हो

📕 फतावा रज़वियह,जिल्द 5,सफह 603

*ये है मां-बाप का हुक्म और उनका मर्तबा,मां-बाप का हक़ इतना बड़ा है कि मौला तआला खुद अपने हक़ के साथ उनका हक़ अदा करने का हुक्म फरमाता है,पढ़िये*

* हक़ मान मेरा और अपने मां बाप का

📕 पारा 21,सूरह लुक़मान,आयत 14

* हुज़ूर ﷺ फरमाते हैं कि क्या मैं तुम्हे सबसे बड़े गुनाह की खबर ना दूं ये कि अल्लाह का शरीक ठहराना और मां बाप की नाफरमानी

📕 बुखारी,जिल्द 2,सफह 884
📕 मुस्लिम,जिल्द 1,सफह 64

*मां की अज़मत पर हुज़ूर ﷺ का क़ौल पूरी दुनियाये इस्लाम में बल्कि सारे मज़हब में मशहूर है आप फरमाते हैं कि*

* जन्नत मां के क़दमों के नीचे है

📕 अलइतहाफ,जिल्द 2,सफह 322

*बाप की शान बयान करते हुए रहमते आलम ﷺ इरशाद फरमाते हैं कि*

* बाप जन्नत का दरवाज़ा है अब तू चाहे तो इसकी हिफाज़त कर और तू चाहे तो हलाक कर दे

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 12


और तुम्हारे रब ने हुक्म फरमाया कि उस के सिवा किसी को ना पूजो और मां बाप के साथ अच्छा सुलूक करो अगर तेरे सामने उनमे से एक या दोनों बूढापे को पहुंच जायें तो उनसे *हूं* तक ना कहना और उन्हें ना झिड़कना और उनसे ताज़ीम की बात कहना.और उनके लिए ताज़ीम का बाज़ू बिछा नर्म दिली से,और अर्ज़ कर कि ऐ मौला तू उन दोनों पर रहम कर जैसा उन दोनों ने मुझे बचपन में पाला

📕 पारा 15,सूरह बनी इस्राईल,आयत 23-24

*ग़ौर कीजिये कि जिन्हे रब 'हूं' करने तक को मना कर रहा है हालांकि 'हूं' तो कोई तहज़ीब से बाहर का लफ्ज़ भी नहीं है मगर आज का मुसलमान माज़ अल्लाह अपने वालिदैन को बुरा कहता है गालियां देता है कुछ कमज़र्फ तो हाथ तक उठाते हैं,सोचिये जिनका ज़िक्र वो अपने साथ बयान कर रहा है सुब्हान अल्लाह उनकी फज़ीलत का क्या कहना होगा*

* हज़रत इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि हुज़ूर ﷺ ने फरमाया कि जो नेक औलाद अपने वालिदैन को मुहब्बत भरी नज़र से देखेगा तो उसे 1 हज मक़बूल का सवाब मिलेगा,तो लोगों ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह ﷺ अगर कोई 100 मर्तबा देखे तो तो हुज़ूर फरमाते हैं कि अल्लाह बहुत बड़ा है अल्लाह बहुत पाक है (यानि बेशक अल्लाह के खज़ाने में कोई कमी नहीं है उसको 100 हज का सवाब अता करेगा)

📕 जवाहिरुल हदीस,सफह 62

*इसकी वज़ाहत करके बात खत्म करता हूं,बहुत सारे ऐसे अमल आप जानते होंगे मसलन 3 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ें तो 1 क़ुरान का सवाब मिलेगा तो बेशक मिलेगा,मगर पूरा क़ुरान पढ़ना और सिर्फ 3 मर्तबा सूरह इखलास पढ़ लेना हरगिज़ बराबर नहीं,इसको युं समझिए कि जैसे बादशाह ने किसी जंग में फतह होने पर अपने वज़ीर को किसी सूबे की जागीर दे दी और कभी किसी शायर का कलाम पसंद आ गया तो उसे भी खुश होकर किसी सूबे की जागीर सौंप दी,हक़ीक़त में दोनों इनआम बराबर है मगर क्या वज़ीर और शायर भी बराबर हो गये,हरगिज़ नहीं,युंही अगर चे मां-बाप को मुहब्बत से देखने पर 1 हज का सवाब मिल रहा है मगर हज्जे बैतुल्लाह करने वाले का जो अज़ीम मर्तबा खुदा के यहां है उसका हज़ारवां हिस्सा भी वालिदैन को मुहब्बत से देखने वाले का नहीं है,ये अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का फज़्लो करम है कि एक छोटे से अमल पर हमको बड़ा सवाब अता कर रहा है,इसका कोई ये मतलब हरगिज़ ना निकाले कि जब हज का सवाब बगैर रुपया खर्च करे मिल रहा है तो इतना रुपया खर्च करने और इतनी मशक़्क़त झेलने की क्या ज़रूरत है,क्या 1 किलो सोना और 1 किलो लोहा बराबर हैं,अगर चे वो वज़न में बराबर हैं मगर कीमत में ज़मीन आसमान का फर्क़ है,बहरहाल वालिदैन को मोहब्बत की नज़र से देखना हर हैसियत से हज्जे काबा के बराबर नहीं मगर यही क्या कम है कि अल्लाह हमारे मां-बाप के सदक़े में हमें हज का सवाब दे रहा है ये वालिदैन की फज़ीलत ही तो है,याद रखें वालिदैन की नाफरमानी ईमान के लिए ज़हर है,मौला तआला से दुआ है कि इस पुर फितन दौर में जब कि मर्द अपनी बीवी के इशारों पर नाच रहा है हमें अपने वालिदैन की अज़मत को पहचानने की तौफीक़ो रफीक़ अता फरमाये,और अज़ाबे क़ब्र व अज़ाबे नार से महफूज़ फरमाये-आमीन*

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Saturday 13 May 2017

इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़ हिस्सा-6


हिस्सा-6

        इल्मे ग़ैब पर वहाबियों का ऐतराज़

7⃣  वहाबी कहता है कि हौज़े कौसर पर कुछ लोग आयेंगे जिन्हें हुज़ूर ﷺ बुलायेंगे तो फरिश्ते अर्ज़ करेंगे कि या रसूल अल्लाह ﷺ ये मुनाफिक हैं तो हुज़ूर ﷺ उन्हें दुत्कार देंगे,अगर हुज़ूर ﷺ को ग़ैब होता तो उन्हें पहले ही खबर हो जाती

7⃣  हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि तुम दुनिया में किसी से भी इस क़दर तकरार नहीं करोगे जितना कि एक कल्मा पढ़ने वाला अपने मुसलमान भाई को जहन्नम में जाते देखकर खुदा से तकरार करेगा,बन्दे अर्ज़ करेंगे कि मौला ये हमारे वो भाई हैं जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते थे रोज़ा रखते थे हज करते थे तूने उन्हें जहन्नम में क्यों डाल दिया तो मौला फरमाएगा कि अच्छा तुम जिन्हे पहचानते हो उन्हें निकाल लो,बन्दे जाकर उन्हें वहां से निकाल लायेंगे फिर मौला अर्ज़ करेगा अब जाकर उन्हें भी निकाल लाओ जिनके दिल में ज़र्रा बराबर भी ईमान हो बन्दे जाकर एक एक मोमिन को चुन चुनकर निकाल लायेंगे,फिर जहन्नम में सिर्फ काफिर ही काफिर रह जायेंगे

📕 बुखारी,जिल्द 6,हदीस 7001
📕 निसाई,जिल्द 8,सफह 112
📕 इब्ने माजा,जिल्द 1,सफह 23

सोचिये कि एक आम मुसलमान को कैसे पता कि कौन मोमिन है और कौन कफिर है मगर वो एक मुस्लमान को उसके चेहरे व आज़ा से पहचान रहा है और वो नबी जो सारे जन्नतियों को जानते हैं सारे जहन्नमियों को जानते हैं वो नहीं पहचानेंगे ये कैसे हो सकता है,हदीसे पाक पढ़िये

* हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि एक दिन हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम हमारे दरमियान हाज़िर हुए तो आपके हाथों में 2 किताब थी,आपने पुछा कि क्या तुम लोग इस किताब के बारे में जानते हो तो सहाबा ने अर्ज़ किया कि या रसूल अल्लाह सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम आपके बग़ैर बताये हम नहीं जानते,तो आपने दाहिने हाथ की किताब की तरफ इशारा किया और फरमाया कि इसमें जन्नत में जाने वालों के नाम उनके बाप के नाम के साथ दर्ज हैं और आखिर में सबका टोटल भी कर दिया गया है कि अब उसमे कमी या ज़्यादती नहीं होगी,फिर बायें हाथ की किताब की तरह इशारा करते हुए फरमाया कि इसमें जहन्नम में जाने वालों के नाम उनके बाप के नाम के साथ दर्ज हैं और आखिर में सबका टोटल भी कर दिया गया है कि अब उसमे कमी या ज़्यादती नहीं होगी

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 36

किसी बात को जानना तो ये अलग बात हो गई मगर इसके बावजूद भी आप फरमाते हैं कि हम क़यामत में सबको पहचानते होंगे,फिर क़यामत में मोमिन की निशानी ये भी होगी कि उसके आज़ाये वुज़ू चमकते होंगे पेशानी पर सजदों के निशान मालूम होंगे नामये आमाल दाहिने हाथ में होगा वहीं काफिर व मुनाफिक की भी पहचान उनके चेहरे से ज़ाहिर होगी,इतनी सारी निशानियां होते हुए भी ये कहना कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उनको नहीं पहचानेगे ये सख्त हिमाक़त ही है,हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम उन मुनाफिकों को यक़ीनन पहचानेगे मगर तअन के तौर पर उनको बुलाया जायेगा कि ये देखो ये हमारे मुख्लिस बन्दे हैं फिर फरिश्तों का बताना और हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का उनको झिड़क कर भगाना दर असल उनकी तकलीफ को और बढ़ाना होगा,इसको युं समझिए कि आपके किसी मिलने जुलने वाले की शादी हुई और उसने आपको दावत में नहीं पूछा तो आपको तकलीफ तो होगी मगर सोचिये कि अगर वही आदमी आपको दावत देता और जब आप उसके घर पहुंचते तो वो सबके सामने आपकी बे इज़्ज़ती करके आपको भगा देता तब उस तकलीफ का अंदाज़ा लगाइये,मुनाफिकों को भी यही तकलीफ देने के लिए बुलाकर भगाया जायेगा और अगर ऐसा नहीं है तो जो फरिश्ते अल्लाह के हुक्म के खिलाफ ज़र्रा बराबर वर्ज़ी नहीं करते वो उन मुनाफिकों को हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम तक पहुंचने ही नहीं देते पहले ही भगा देते,बात कुछ नहीं है सिर्फ इतनी सी है इन वहाबियों के दिमाग में गोबर भरा हुआ है इसी लिए उन्हें सही और गलत की तमीज़ नहीं रह गई है

📕 जा'अल हक़,हिस्सा 1,सफह 119

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*ZEBNEWS

Friday 12 May 2017

इल्मे दीन हिस्सा-3


हिस्सा-3   इल्मे दीन

* अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त क़ुरान मुक़द्दस में इरशाद फरमाता है कि "अल्लाह तुम्हारे ईमान वालों के और उनके जिनको इल्म दिया गया है दर्जे बुलंद फरमायेगा

📕 पारा 28,सूरह मुजादिला,आयत 11

* हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि "आलिम की फज़ीलत आबिद पर ऐसी है जैसी मेरी फज़ीलत तुम्हारे अदना पर

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 244

* जो इल्मे दीन के लिए चलेगा तो फरिश्ते उसकी राह में अपना पर बिछा देते हैं और उनके लिए ज़मीनों आसमान की हर चीज़ यहां तक कि पानी में मछलियां भी मग़फिरत की दुआ करती हैं और आलिम की फज़ीलत आबिद पर ऐसी है जैसी चौदहवीं रात के चांद की फज़ीलत सितारों पर होती है और उल्मा अम्बिया के वारिस हैं

📕 अबु दाऊद,जिल्द 3,सफह 99

* अल्लाह तआला जिसके साथ भलाई का इरादा करता है तो उसे दीन की समझ (फिक़ह) अता फरमाता है

📕 बुखारी,जिल्द 1,सफह 137

* एक आलिम शैतान पर 1000 आबिदों से ज़्यादा भारी है

📕 तिर्मिज़ी,जिल्द 2,सफह 242

* बेहतरीन इबादत फिक़ह है,फिक़ह के बग़ैर कोई इबादत नहीं और फक़ीह की मजलिस में बैठना 60 साल की इबादत से बेहतर है

📕 कंज़ुल उम्माल,जिल्द 10,सफह 100

*सोचिये जिनका मर्तबा खुदा बुलंद फरमा रहा है,जो अम्बिया के वारिस हैं,जिनके लिए दुनिया की हर चीज़ मग़फिरत की दुआ करती है,जिनका मर्तबा इबादत गुज़ार बन्दों पर ऐसा है जैसा कि हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का मर्तबा उनके अदना उम्मती पर,उन आलिमों की शान में आज की जाहिल अनपढ़ अवाम बकवास करती है,याद रखें*

* जिसने किसी आलिम की तौहीन इस बिना पर की कि वो आलिमे दीन है काफिर है

📕 अनवारुल हदीस,सफह 91

* उसूले शरह चार हैं 1.क़ुरान 2.हदीस 3.इज्माअ यानि फिक़ह 4.क़यास जो इनमे से किसी एक एक का भी इंकार करे काफिर है

📕 फतावा मुस्तफविया,सफह 55

*फिक़ह का बयान आगे करूंगा इन शा अल्लाह तआला,एक आलिम और आबिद में क्या फर्क है उसको जानने के लिए ये रिवायत पढ़िये*

* एक दिन अस्र के बाद इब्लीस ने पानी पर अपना तख्त बिछाया और सभी शैतानो से उनके काम की रिपोर्ट लेने लगा,किसी ने कहा कि मैंने लोगों को बहकाकर शराब पिलवाई किसी ने कहा मैंने ज़िना करवाया किसी ने कहा मैंने बन्दों को नमाज़ से रोक दिया,इब्लीस सब की सुनता रहा फिर एक ने कहा कि आज मैंने एक बच्चे को इल्मे दीन सीखने से रोक दिया तो इस पर इब्लीस उछल पड़ा कि हां तूने बड़ा काम किया,इस पर बाकी शैतानों ने ऐतराज किया कि हमने इतना बड़ा बड़ा काम किया और कोई तारीफ नहीं और इसने एक बच्चे को इल्म से रोक दिया तो इतनी खुशी क्यों,इस पर इब्लीस बोला कि तुमने जिसको बहकाया वो इल्म से कोरे थे अगर उनके पास इल्म होता तो कभी वो तुम्हारे बहकावे में ना आते,अगर तुम्हे इल्म की फज़ीलत समझनी है तो चलो मेरे साथ मैं समझाता हूं,वो सबको लेकर एक मस्जिद के बाहर अंधेरे में खड़ा हो गया,फज्र का वक़्त था एक आबिद साहब पहुंचे उसने उनको रोका सलाम जवाब हुआ फिर इब्लीस ने मसला पूछने की गर्ज़ से अपनी जेब से एक शीशी निकाली और उनसे कहा कि क्या अल्लाह तआला इस शीशी के अंदर सातों ज़मीन आसमान को दाखिल कर सकता है,तो आबिद साहब कहने लगे कि कहां ये छोटी शीशी और कहां इतना बड़ा ज़मीनों आसमान ये नहीं हो सकता,ये कहकर वो चले गए इब्लीस ने कहा कि देखो मैंने इसकी राह मार दी इसको जब खुदा की कुदरत पर ही भरोसा नहीं है तो इसकी इबादत बेकार है,फिर वो कुछ देर रुका रहा कि अचानक एक आलिम साहब जल्दी जल्दी बढ़ते हुए मस्जिद की तरफ चले आ रहे थे,उसने रोका सलाम किया मसला पूछना चाहा तो वो फरमाते हैं कि फज्र का वक़्त बहुत कम है जल्दी पूछो,इस पर उसने वही शीशी निकाली और वही सवाल पूछा तो आलिम साहब ने फरमाया कि ज़रूर तू मलऊन मालूम होता है मेरा रब क़ादिरे मुतलक़ है अरे ये शीशी तो बहुत बड़ी है अगर वो चाहे तो सातों ज़मीन आसमान क्या चीज़ है करोड़ों ज़मीन आसमान सूई के नाके के अंदर समां दे,ये कहकर वो चले गए तो इब्लीस अपने चेलों से कहता है कि देखो ये इल्म की बरकत है तो जिसने इल्म से किसी को रोक दिया उसने सबसे बड़ा काम किया

📕 मलफूज़ाते आलाहज़रत,जिल्द 3,सफह 21

*इससे तीन बातें साबित हुई पहली ये कि आलिम आबिद से बेहतर है दूसरा ये कि आलिम से डरना या उनसे बुग्ज़ रखना शैतानी काम है तीसरा ये कि बग़ैर इल्म के इबादत भी खतरे में है,लिहाज़ा इल्मे दीन हासिल करें*

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Tuesday 9 May 2017

Wazayaf


***** Wazayaf *****

* जो भी काम शुरू करें वो पूरा ना होता हो या किसी भी मुश्किल का हल ना निकलता हो तो बाद नमाज़े मग़रिब 1000 बार "या रशीदो" يا رشيدُ पढ़ें,इन शा अल्लाह उसका हल निकल आयेगा और अगर हमेशा पढ़ता रहे तो सारे जायज़ काम खुद बखुद पूरे होते जायेंगे और रोज़गार में भी खूब तरक़्क़ी होगी

📕 रूहानी इलाज,सफह 150

* जिस किसी के सीने में दर्द हो तो सूरह "अलम नशरह" लिखकर धोकर पिलायें दर्द दफअ होगा इन शा अल्लाह

📕 शम्ये शबिस्ताने रज़ा,सफह 412

* जो कोई एक बार दुरूदे सआदत "अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्यदना व मौलाना मुहम्मदिन अदादा माफी इलमिल लाहे सलातन दा---एमातम बिदावामे मुल्किल लाह" اللهم صلى على سيدنا محمّد عدد مافى علم الله صلوة دآيمةً بداوام ملك الله पढ़ता है तो 6 लाख दुरूदे पाक का सवाब उसके नामये आमाल में लिखा जाता है

📕 खज़ीनये दुरूद शरीफ,सफह 234

* जो कोई सुबह और शाम को ये दुआ "अल्लाहुम्मा लकल हम्दो हम्दन दा--एमन मअ दवामेका व लकल हम्दो हम्दन खा-लेदन मअ खुलूदेका व लकल हम्दो हम्दल लामुन्तहा लहु दूना मशीय्यतेका व लकल हम्दो हम्दन इन्दा कुल्ले तरफते अैनिवं व तनफ्फोसे कुल्ले नफ्स" اللهم لك الحمد ححمدا دا~ىما مع دوامك ولك الحمد حمدا خالدا مع خلودك ولك الحمد حمدا اللآمنتهى له دون مشىتك ولك الحمد حمدا عند كل طرفة عين وتنفس كل نفس  सिर्फ 1 बार पढ़ लेगा तो फज़ले रब्बी से दिनों रात इबादत करने वाले को जितना सवाब मिलता है इस दुआ के पढ़ लेने वाले को उतना सवाब मिल जायेगा इन शा अल्लाह,याद रखें कि आधी रात ढलने के बाद से सूरज निकलने तक सुबह है और दोपहर ढलने से ग़ुरूब आफताब तक शाम है

📕 सोलह सूरह,सफह 234

* जो कोई हर नमाज़ के बाद पारा 19 सूरह फुरक़ान आयत नं0 74 "रब्बना हबलना मिन अज़वाजेना व ज़ुर्रीयातेना क़ुर्रता आय्योनिवं वजअलना लिल मुत्तक़ीना इमामा" ربنا هب لنا من ازواجنا وذريتنا قرة اعين واجعلنا للمتقينا
اماما  आयत 1 बार पढ़ लिया करे तो उसके बीवी बच्चे सब ही दीनदार हो जायेंगे इन शा अल्लाह

📕 मसाएलुल क़ुरान,सफह 283

* जिनकी आंखों की रौशनी कमज़ोर हो गई हो वो पांचों नमाज़ों के बाद 11 बार "या नूरो" يا نورُ पढ़कर दोनों हाथों के पोरों पर दम करके आंखों पर रखें

📕 जन्नती ज़ेवर,सफह 476

* आमन्तो बिल्लाहे व रसूलेही" آمنت بلله ورسوله पढ़ने से वस्वसे फौरन ही दूर हो जाते हैं

📕 अलमलफूज़,हिस्सा 1,सफह 71

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